द्रोणपुष्पी: प्राचीन आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी का आधुनिक उपयोग और लाभ

द्रोणपुष्पी: प्राचीन आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी का आधुनिक उपयोग और लाभ

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द्रोणपुष्पी, जिसे अंग्रेजी में 'Thumbe' के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है जिसके फूल द्रोण (दोना या प्याला) के जैसे होते हैं। इसका नाम उसके फूलों के आकार के आधार पर रखा गया है।

द्रोणपुष्पी का पौधा उच्चायु और अव्यापक होता है, जिसकी तने और शाखाएं चतुर्कोणीय होती हैं। इसके पत्ते सीधे और अण्डाकार-भालाकार होते हैं, जिनमें गंध होती है और यह स्वाद में कड़वा होता है। इसके छोटे, सफेद फूल और भूरे रंग के फल इसकी खासियत हैं। इसकी जड़ सफेद रंग की होती है और स्वाद में चर्परी होती है। यह पौधा अगस्त से दिसम्बर तक फूलता है।

द्रोणपुष्पी के कई प्रजातियां होती हैं, जिनमें से कुछ अहम हैं:

  • Leucas aspera (Willd.) Link (द्रोणकपुष्पी)
  • Leucas zeylanica Br (क्षुद्र द्रोणपुष्पी)

इनका उपयोग भूख की कमी, पेट फूलना, दर्द, टाइफाइड, बुखार, और पेट के रोगों के इलाज में किया जाता है।

द्रोणपुष्पी के औषधीय गुणों के कारण यह आयुर्वेद में महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके उपयोग से वात, पित्त, कफ, भुजंग और शोथ संबंधित विकारों में लाभ मिलता है। इसका प्रयोग पुराने समय से बुखार, खांसी, ठंड, सर्दी, मेंसेजिया, धमनिविकार, रक्तशोधक, मेदस्या, दिल के रोग, और बालविकार के उपचार में भी किया जाता है।

द्रोणपुष्पी की पहचान

विभिन्न भाषाओं में द्रोणपुष्पी के नाम:

 भाषा नाम
अंग्रेजी Thumbe
संस्कृत फलेपुष्पा
गुजराती दोशिनाकुबो
तेलुगु तुम्मी
पंजाबी गुलडोडा
तमिल नेयप्पीरक्कू
हिंदी धुरपीसग
बंगाली घलघसे
मराठी देवखुम्बा
मलयालम तुम्बा
राजस्थानी निडालू कुबी
कन्नड़ तुम्बे
नेपाली सयपत्री

 

द्रोणपुष्पी के आयुर्वेदिक गुण-कर्म और प्रभाव इस प्रकार हैं:

  • रस (Taste): मधुर, कटु, लवण

  • गुण (Properties): उष्ण, गुरु, लघु, तीक्ष्ण

  • दोष प्रकोपक (Dosha aggravation): वातपित्तकारक, कफशामक

  • क्रिया (Action): पथ्य, भेदन, मेध्य

  • रसायन (Rejuvenative): द्रोणपुष्पी में वेदनाशामक और शोथहर गुण होता है।

  • प्रभाव (Effect): द्रोणपुष्पी वात और पित्त को शांत करती है और कफ को बाहर निकालने में मदद करती है। इसका सेवन मानसिक शक्ति को बढ़ाता है और रुचि को बढ़ाता है। यह शारीरिक और मानसिक तनाव को कम करने में सहायक होती है और मस्तिष्क को सक्रिय रखती है।

द्रोणपुष्पी के औषधीय लाभ:

1. पेट के रोगों का उपचार:

द्रोणपुष्पी पेट संबंधित समस्याओं जैसे कि अपच, गैस, एसिडिटी, और पेट की सूजन में मदद कर सकती है। इसे आमतौर पर काढ़े या चाय के रूप में उपयोग किया जाता है।

2. बुखार के इलाज में सहायक:

इसके रक्तशोधक गुण बुखार के इलाज में मददगार हो सकते हैं, जो किसी इन्फेक्शन या वायरस के कारण हो सकता है।

3. वात, पित्त, और कफ के संतुलन को बनाए रखने में मददगार:

द्रोणपुष्पी वात, पित्त, और कफ को संतुलित करने में मदद कर सकती है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।

4. शोथ संबंधित विकारों का इलाज:

इसके रक्तशोधक गुणों के कारण, द्रोणपुष्पी शोथ संबंधित विकारों जैसे कि आर्थराइटिस, गठिया, और सूजन का इलाज में मददगार हो सकती है।

5. रक्तशोधक गुणों के कारण स्वास्थ्य को सुधारने में सहायक:

द्रोणपुष्पी के रक्तशोधक गुण से, यह शरीर के विभिन्न अंगों की सफाई और शुद्धि करने में मदद कर सकती है। इसे रक्तशोधक के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।

6. मेदस्या का इलाज:

इसके द्रोणपुष्पी के भेदनकारी गुण उदर विकारों जैसे कि अपच, कब्ज, और आंत्र इंफेक्शन का इलाज कर सकते हैं।

7. दिल के रोगों के उपचार:

इसके मेध्य गुणों के कारण, द्रोणपुष्पी दिल संबंधित समस्याओं के इलाज में मदद कर सकती है, जैसे कि हृदय रोग, हार्ट ब्लॉकेज, और उच्च रक्तचाप।

8. बालविकार का उपचार: इसके रक्तशोधक गुण त्वचा के स्वस्थ और चमकदार रहने में मदद कर सकते हैं, जिससे बालों की सेहत बनी रहती है।

9. सांप काटने पर उपचार:

द्रोणपुष्पी के फायदों में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके रक्तशोधक गुण सांप के जहर को खत्म करने में मदद कर सकते हैं। सांप के काटने पर, उसका विष शरीर में प्रवेश करता है जो गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है। द्रोणपुष्पी के रक्तशोधक गुण सांप के विषाणुओं को नष्ट कर सकते हैं और इस तरह विष के प्रभाव को कम कर सकते हैं। यह उपाय आपको सांप के काटने के बाद जल्दी उपचार प्राप्त करने में मदद कर सकता है और गंभीरता को कम कर सकता है।

10. त्वचा रोगों का उपचार:

द्रोणपुष्पी के लेप को लगाने से त्वचा में सुखापन आता है और त्वचा के अंगों को ताजगी मिलती है। इससे त्वचा की खुजली और लालिमा कम होती है और त्वचा के रोगों का उपचार होता है।

द्रोणपुष्पी के उपयोगी भाग:

द्रोणपुष्पी के इन भागों का इस्तेमाल किया जाता है:

  • पंचांग
  • पत्ते
  • जड़
  • बीज

द्रोणपुष्पी का इस्तेमाल कैसे करें?

द्रोणपुष्पी को इतनी मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिए:
  • रस: 5-10 मिली
  • काढ़ा: 10-30 मिली

प्रयोग (Uses) of Dronapushpi:

1. बुखार में उपयोग (Fever):

द्रोणपुष्पी के रस के साथ कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से ज्वर (बुखार) के रोग में आराम पहुंचता है।

2. सर्दी में उपयोग (Cold):

द्रोणपुष्पी के रस का नाक में डालने और सूंघने से सर्दी दूर हो जाती है।

3. पीलिया में उपयोग (Jaundice):

द्रोणपुष्पी के पत्तों का रस आंखों में हर दिन सुबह-शाम लगाने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।

4. श्वास, दमा में उपयोग (Breathing, Asthma):

द्रोणपुष्पी के सूखे फूल और धतूरे के फूल का छोटा सा भाग मिलाकर धूम्रपान करने से दमे का दौरा रुक जाता है।

5. यकृत (जिगर) वृद्धि में उपयोग (Liver Enlargement):

द्रोणपुष्पी की जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में 1 ग्राम पीपल के चूर्ण के साथ सुबह-शाम कुछ हफ्ते तक सेवन करने से जिगर बढ़ने का रोग दूर हो जाता है।

6. खांसी में उपयोग (Cough):

3 ग्राम द्रोणपुष्पी के रस में 3 ग्राम बहेड़े के छिलके का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से खांसी का रोग ठीक हो जाता है।

7. दांतों का दर्द में उपयोग (Toothache):

द्रोणपुष्पी का रस, समुद्रफेन, शहद, और तिल के तेल को मिलाकर कान में डालने से दांतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं और दर्द भी ठीक होता है।

स्वामी कर्मवीर जी द्वारा द्रोणपुष्पी की अत्यधिक जानकारी वीडियो के माध्यम से दी गई है:


संक्षेप में द्रोणपुष्पी अपनी आयुर्वेदिक गुणों के लिए जानी जाती है, स्वास्थ्य और वेलनेस के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है। इसके विविध उपयोग पाचन समस्याओं, बुखार, श्वसन संबंधी समस्याओं, जिगर के रोग, दंत समस्याओं, और त्वचा विकारों का इलाज करने में सहायक होते हैं।
हालांकि, इसे ध्यानपूर्वक और किसी पात्र स्वास्थ्य प्रदाता के मार्गदर्शन में सेवन करना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके शक्तिशाली औषधीय गुण होते हैं। द्रोणपुष्पी जैसी परंपरागत जड़ी-बूटियों को ग्रहण करना, आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्थाओं को पूरक कर सकता है और समग्र कल्याण में सहायक हो सकता है।

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